२८९ ॥ श्री गुरुबख्श सिंह जी ॥
पद:-
काहे काहे मोरी रोको गैल।१।
मैं यमुना जल भरनि जात हौं आय अचानक पकरत प्यारे राखत हौ कछु मन में मैल।२।
कर मेरो पकरि कलाई मुरकायो बड़े निडर तुम नन्द के लालन छरे छबीले छैल।३।
सब सारी मसकाई हम कैसे घर जाई रहि रहि पछिताई अकुलाई संकुचाई तोहि लाज न आई अस ढीठ भैल।४।