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२९३ ॥ श्री राम सुख जी ॥


पद:-

हरि तेरी टेढ़ी टेढ़ी निराखनि मन बश करि लीन।१।

बोलनि हँसनि चलनि अति प्यारी बरनत बनै न रसना हारी

लागि जात प्रेम कि तारी ऐसे चतुर प्रवीन।२।

गृह में हम से रहा न जावै बिन देखे जिय चैन न आवै

रैन दिवस बस यहि सुहावै भूँख प्यास सब छीन।३।

प्रेम भाव के भूखे प्यारे घट घट की सब जानन हारे

सब के नैनन के हौ तारे सब तुमरे आधीन।४।