२९५ ॥ श्री गणेश दास जी ॥
पद:-
आज राधे सोहैं श्याम के काँधे पर।
जोड़ी जुगुल कि छबि अति प्यारी सखा औ सखी बोलैं बलिहारी
धाय धाय पैकरमा करि।
नभ ते सुर मुनि लखि हरषावैं भाँति भाँति के फूल गिरावैं
जय जय कार रहे सब कर।
मुरली अधर पै धरि के प्यारे कूकि देत तन सुधि बिसरारे
सब को प्रभु लियो बश में कर।
दै थिरकैयाँ बहु बिधि नाचैं नूपुर छम छम छम छम बाजैं
प्रिया को नेकैं नाही खबर।५।
प्रतिमा सम पधरीं सुकुमारी नेकौं पलक न सकैं उघारी
दामिनि सम चमकैं ऊपर।
श्याम पीत परकाश निकलती लपटि के एकै में है मिलती
छाय जाय फिर बृज घर घर।
लै सुर दून तीन पर गावैं राग साज सम भेद न आवै
जड़ चेतन को चित दे भर।८।
दोहा:-
श्याम बैठि के लेटिगे, भयो प्रिया को होश।
सखा सखी कहैं घर चलो क्यों प्रिया करतीं रोश॥
सोरठा:-
अबहूँ नहि सन्तोष, काँधे बैठ्यौ श्याम के।
प्रेम में रहा न होश, मन मोह्यौ नर बाम के॥
चौपाई:-
सखा सखिन के बचन सुहाये। सुनि हरि प्रियाहिं निरखि मुसुकाये॥
प्रिया हँसी सब हँसने लागे। सब हरि प्रिया के रस में पागे॥
सखा सखी राधे औ मोहन। चलि पहँचे निज निज फिर भवनन॥
नाना लीला नित प्रति करहीं बृज बासिन को मोद में भरहीं॥
दास गणेश चरण रज चहही। कृपा होय नैनन फल लहही॥