२९६ ॥ श्री हरिहर दास जी ॥
पद:-
श्याम राधे बने राधे श्याम बनीं ऐसी जोड़ी सुघर सुखमा को भनी।
भूषण बसन बदल तन पहिरयो मातु पिता त्रिभुवन के धनी।
प्रथमै रास भवन आ बैठे सखा औ सखी फिर पहुँचे गुनी।
नख शिख निरखैं बोलि न पावैं नभ ते सुर सब हँसत मुनी।
श्याम क तन लखै गौर वर्ण है राधे क तन जैसे नील मणी।५।
मन ही मन सब करत बिचारैं बैठे ठाढ़े जन औ जनी।
राधे ने बँशी बजाय दई तहँ प्रेम में सुधि बुधि सब की सनी।
रास करन सब हिलि मिलि लागे पहिले से प्रीति बढ़ाई घनी।
बिबिधि भाँति ते नाचत गावत साज बजावत खूब ठनी।
राधे के खेल को श्याम करैं तँह श्याम के खेल पै राधे चुनी।१०।
समता प्रिय प्रीतम की जानो फरक परत नहि एक कनी।
प्रगटि कै जै जै कार कियो तँह बीच सभा में सहस फनी।
निश्चय प्रेम करै हरि से तन असुरन आपै देंय हनी।
सो जाय साकेत में सुक्ख लहै आसन सिंहासन छत्र तनी।
जग में रहि पाप अनेक किह्यों सब माफ़ कियो नहिं एकौ गिनी।
हरि हर दास केरी बिनती घनश्याम कृपा निधि खूब सुनी।१६।