३०३ ॥ श्री सब्ज़ परी जी ॥
पद:-
मैं तो साँवलिया को ढूँढत चलियाँ।१।
बिषय भोग में मन यह लपट्यौ या से देरी लगिया।२।
कबहूँ कपा करैंगे प्यारे नैनन सन्मुख लखियाँ।३।
सब्ज परी कहै सब्र बिना बनती नहिं कोई बतिया।४।
पद:-
मैं तो साँवलिया को ढूँढत चलियाँ।१।
बिषय भोग में मन यह लपट्यौ या से देरी लगिया।२।
कबहूँ कपा करैंगे प्यारे नैनन सन्मुख लखियाँ।३।
सब्ज परी कहै सब्र बिना बनती नहिं कोई बतिया।४।