३०८ ॥ श्री नँगा दास जी ॥
पद:-
नाम धन पा गये जे हैं उन्हीं की तो भलाई जी।
राम सीता रहैं सन्मुख छटा अनुपम सोहाई जी।
धुनी सब तन से जारी है और हर शै में छाई जी।
नाम औ रूप की सृष्टी सृष्टि उसमें समाई जी।
बेद औ शास्त्र सुर मुनि सब यही बानी सुनाई जी।५।
बिना सतगुरु नही बजती यह अति पावन बधाई जी।
दरश पाने ही से प्यारे नहीं होती रिहाई जी।
जाय बैकुण्ठ सुख भोगै लौटि यँह फेरि आई जी।
नाम जीप रूप जो पावै वही सच्चा कहाई जी।
ध्यान परकाश लय जानै लौटि फिर वह न आई जी।१०।
कहैं नंगा वही चंगा जियत में जो कमाई जी।
सदा निर्वैर औ निर्भय जो इस पदवी को पाई जी।१२।