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३११ ॥ श्री टीका दास जी ॥


पद:-

वही ज्ञानी वही ध्यानी वही लय जाय दें सानी।

वही योगी वही भोगी वही सब सृष्टि के खानी।

वही उत्पति वही पालन वही परलय वही जानी।

वही कहते वही सुनते वही कटु औ मधुर वानी।

वही तारैं वही तरते वही सब सहते हैरानी।५।

वही खाते वही पीते वही सोवैं बसन तानी।

दशा सिद्धा कि ये बातैं बिना सतगुरु न कोइ जानी।

दास टीका कहैं समझो लय तब आप मनमानी।८।