३१७ ॥ श्री भैरव दास जी ॥
पद:-
जागता है वही जग में जिसे सतगुरु जगाया है।
शब्द का भेद दे करके धुनी में मन लगाया है।
रूप सन्मुख रहै हर दम ध्यान लय में पगाया है।
द्वैत की फ़ौज को तन से मारि करके भगाया है।
दीनता प्रेम की सेना हिफ़ाजत हित मँगाया है।
दास भैरव कहैं सुनिये सोई हरि रँग रँगाया है।