३१८ ॥ श्री मोहन दास जी ॥
पद:-
जागता है वही जग में जिसे सतगुरु लखाया है।
नाम औ रूप रस अनुपम दया करि के चखाया है।
मृत्यु से हाथ जोड़वा के हारि मुख ते भखाया है।
हमारे जे हितू तन में उन्हैं खुब सिख सिखाया है।
चोर सब पकड़ि के बाँधे अवनि नीचे रखाया है।
कहैं मोहन बिना सुमिरै करम निज को झखाया है।६।