३२२ ॥ श्री आत्मा राम जी ॥
दोहा:-
सुमिरन जे जन नहि करैं, ते पीछे पछिताहिं।
काम बिगारैं आपनो, उल्टा पीटे जाहिं।१।
यम स्थूल शरीर को, मारैं खूब अघाय।
सूक्षम तन निकसै तबै, ता को बाँधै धाय।२।
लै जावैं तब नर्क में, देवैं खूब सजाय।
पल भर कल पावैं नहीं, हाय हाय चिल्लाय।३।
सोरठा:-
कहैं आत्मा राम, सुमिरन ही सुख सार है।
भजैं जे आठों याम, सोई जग से पार है॥