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३२१ ॥ श्री केशव भारती ॥

पद:-

हम तो हर दम ही श्यामा श्यामै लखैं।

केशव भारती बचन यह साँचे भखैं।

हरि के नाम कि धुनि पै सूरति रखैं।

क्या अनुपम अभी रस मन भर चखैं।

नहिं परदा नेकहू दुइ का रखैं।५।

 

जे सतगुरु से मारग ये नाहीं सिखैं।

ते कर्मन को अपने नाहक झखैं।

ज्ञान पढ़ि सुनि कहैं औ तन मन मखैं।८।