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३३२ ॥ श्री लाल दास जी ॥

(अवध वासी)
 

दोहा:-

शान्ति दीनता हृदय धरि हरि का सुमिरन कीन।

या से हरि ने भेजि मोहिं पर बिष्णु ढिग दीन।१।

लाल दास कहैं और कोइ बिधि हम जान न पाय।२।

साधारण जो रीति है, सोइ तन मन गइ भाय।२।