३३७ ॥ श्री प्रह्लाद दास जी ॥
(अवध वासी)
दोहा:-
तन मन प्रेम लगाय कै, जपै राम का नाम।
सेवा ठाकुर की करै, पावै सो हरि धाम।१।
प्रह्लाद दास कहैं निष्कपट जब तक जीव न होय।
तब तक वह हरि से बिमुख, दरशन कैसे होय।२।
(अवध वासी)
दोहा:-
तन मन प्रेम लगाय कै, जपै राम का नाम।
सेवा ठाकुर की करै, पावै सो हरि धाम।१।
प्रह्लाद दास कहैं निष्कपट जब तक जीव न होय।
तब तक वह हरि से बिमुख, दरशन कैसे होय।२।