३३९ ॥ श्री पं. उमापति जी ॥
(अवध वासी)
चौपाई:-
बहु बिप्रन को शास्त्र पढ़ायन। कर्म धर्म के मार्ग सिखायन।१।
सुमिरन दान पाठ कछु कीन्हा। या से हरि मोहिं हरि पुर दीन्हा।२।
दोहा:-
उमा दत्त कहैं धन्य वै, जे सुमिरैं बसुयाम।
उनकी पदवी बड़ी है, पावैं अचल मुकाम॥