३५३ ॥ श्री घनश्याम शरण जी ॥
(अवध वासी)
चौपाई:-
त्यागि कपट हरि सुमिरन कीजै। तब हरि धाम में वासा लीजै।१।
घनश्याम शरन कहैं सो सुख पावै। द्वैत भाव जो हृदय न लावै।२।
(अवध वासी)
चौपाई:-
त्यागि कपट हरि सुमिरन कीजै। तब हरि धाम में वासा लीजै।१।
घनश्याम शरन कहैं सो सुख पावै। द्वैत भाव जो हृदय न लावै।२।