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३५४ ॥ श्री फकीरे राम जी ॥

(अवध वासी)

 

 चौपाई:-

सिया राम सुमिरै जो कोई। अन्त में हरि पुर बैठे सोई।१।

कहैं फकीरे राम सुनाई। सुमिरन ते सब दुःख नसाई।२।