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३५८ ॥ श्री बाबा जै राम दास जी ॥

(जमाति वाले)

 

दोहा:-

जपेन माल निष्कपट ह्वै, कहैं दास जै राम।

अन्त समय हम यान चढ़ि पहुँचि गयन हरि धाम।१।

सन्तन की किरपा भई, दीन्ह्यों मोहिं उबार।

सेवा उनकी जो करै, सो होवै भव पार।२।