३६८ ॥ श्री देवादास जी ॥
(अवध वासी)
चौपाई:-
धुनी तापि हरि सुमिरन कीन्हा। अन्त समय हरिपुर हम लीन्हा।१।
देवादास कहैं सुनि लीजै। धुनी तापि हरि सुमिरन कीजै।२।
(अवध वासी)
चौपाई:-
धुनी तापि हरि सुमिरन कीन्हा। अन्त समय हरिपुर हम लीन्हा।१।
देवादास कहैं सुनि लीजै। धुनी तापि हरि सुमिरन कीजै।२।