३८२ ॥ श्री सरवन जी ॥
दोहा:-
राम नाम सुमिरन करै मातु पिता सेवकाय।
अन्त समय बैकुण्ठ को चढ़ि बिमान सो जाय।१।
सरवन कहैं सुनाय, बचन मानिहैं ते सुखी।
ऐसी सुलभ उपाय, नहिं मानैं ते हों दुखी।२।
दोहा:-
राम नाम सुमिरन करै मातु पिता सेवकाय।
अन्त समय बैकुण्ठ को चढ़ि बिमान सो जाय।१।
सरवन कहैं सुनाय, बचन मानिहैं ते सुखी।
ऐसी सुलभ उपाय, नहिं मानैं ते हों दुखी।२।