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३८३ ॥ श्री गोगे दास जी ॥


दोहा:-

जगत मातु श्री राधिका, जगत पिता घनश्याम।

चरन कमल बन्दन करौं, कीजै उर बिश्राम॥


पद:-

श्री घनश्याम श्री राधे कि दाया जिस पै हो जाये।

वही नर तन से छुट करके पार भव सिन्धु हो जाये।

अधम औ दीन भक्तन हित लिया अवतार करते हैं।

क्षिमा अवगुन करैं छिन में जो उनकी शरन में आये।

धुनी एक तार जो सुनते हैं प्रभु के नाम की प्यारी।५।

रहैं उनके सदा सन्मुख युगुल झाँकी छटा छाये।

ध्यान में जाय कर देखैं करैं जो देव मुनि लीला।

बजै अनहद तहाँ बाजा बहुत परकार मन भाये।

बढ़ै जब ध्यान के आगे समाधी लय जिसे कहते।

रहै सुधि बुधि नहीं नेकौं उतरि फिरि क्या वो बतलाये।१०।

जाप खुलि जाय पन्द्रह बिधि कि हर दम जौन होती है।

सर्गुन निरगुन को तब जाने द्वैत वह फिरि न लखि पाये।

सनातन से चली आती है जो मर्य्याद सो करिये।

बिना सतगुरु न अपनावैं शम्भु बिधि कीन तब पाये।१४।


शेर:-

प्रेम करने से दर्शन देके बतलाते औ हँसते है।

कहैं गोंगे प्रिया प्रीतम बचन यह हमको समुझाये॥