साईट में खोजें

३८४ ॥ श्री चिरकुट दास जी ॥


पद:-

बिना रसना कि जप होवै यही उत्तम भजन जानो।

कहैं अजपा जिसे सुर मुनि करो सतगुरु बिधी जानो।

धुनी एक तार जारी हो जो हर शै से निकलती है।

छटा सिय राम की सन्मुख यही उत्तम भजन जानो।

बजै अनहद कि धुनि प्यारी लखौ क्या ध्यान में लीला।५।

देव मुनि संग बतलावैं यही उत्तम भजन जानो।

समाधी लय में सुधि बुधि नहिं रहै बतलाय क्या सकते।

उतरि आवो धुनी दरशन यही उत्तम भजन जानो।

जियत में जान कर भाई बासना नाश कर दीजै।

तरौ तारौ मुदित तन मन यही उत्तम भजन जानो।१०।

अगर अभिमान कछु होवै खोंटि हरि देंय चट अँकुर।

सुधारैं अपने भक्तन को यही उत्तम भजन जानो।

ध्यान भक्तों के हरि करते भक्ति हरि रंग मे जे माते।

वही पावैं ये सुख अनुपम यही उत्तम भजन जानो।

किया वादा गरभ में जो कहैं चिरकुट सो बिसराये।

चेत करके चलो निज घर यही उत्तम भजन जानो।१६।