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३८७ ॥ श्री नाथू दास जी ॥


पद:-

समाधी सहज जब जानो ध्यान जप संग में होवै।

मार्ग उत्तम निबृत्ती का कर्म शुभ अशुभ को खोवै।

मिलै पिंशन उसे भाई चेत कर बीज जो बोवै।

करैं तय जियत में यहँ पर वही सुख से वहाँ सोवै।

नहीं तो अन्त में दोज़ख पड़े कल्पों वहां रोवै।

कहैं नाथू बिना सतगुरु कोई भव पार नहिं होवै।६।