३९४ ॥ श्री यतीन्द्रनाथ जी ॥ दोहा:- यतीन्द्रनाथ कहैं जासु तन, परस्वारथ में जाय। सो बैकुण्ठ को जात हैं जगत रहै यश छाय॥