३९५ ॥ श्री भगत सिंह जी ॥
दोहा:-
मन ही मन सुमिरन करत, राम नाम को मान।
फाँसी पर हम चढ़ि गयन त्यागि दीन तन जान।१।
दिब्य रूप तुरतै मिल्यौ आयो सुभग बिमान।
ता पर बैठेन हर्षि कै, पहुँचेन हरि पुर जान।२।
भगत सिंह कहैं जौन बिधि, हम करि गयन पयान।
सो सब तुम से दीन कहि, मानो बचन प्रमान।३।