४१४ ॥ श्री फिक्कू जी ॥
शेर:-
बिना हरि के सुमिरे नहीं भव से छूटैं।
पकड़ कर के यमराज नस नस को कूटैं।१।
बिमुख हरि से जे हैं वे पापों को लूटैं।
रहेम बेच खाई दुई कैसे टूटै।२।
करो मुरशिद हरि का वो पकड़ावैं खूटै।
शरम औ भरम का तभी भाँड़ा फूटैं।३।
कहैं फिक्कू हरदम जिकिर में जो जूटै।
वही उस अमी के प्याले को घूटै।४।