४१९ ॥ श्री झाँझू दास जी ॥
दोहा:-
झांझा वाद को त्यागि कै हरि को सुमिरौ भाय।
अँजुलि जल परमान यह नर तन छीजत जाय।१।
झाँझू कह चित चेतिये, काहे रहे भुलाय।
झाँझी कौड़ी नहि मिलै जो न भजै रघुराय।२।
दोहा:-
झांझा वाद को त्यागि कै हरि को सुमिरौ भाय।
अँजुलि जल परमान यह नर तन छीजत जाय।१।
झाँझू कह चित चेतिये, काहे रहे भुलाय।
झाँझी कौड़ी नहि मिलै जो न भजै रघुराय।२।