४२१ ॥ श्री आनन्द गिरि जी ॥
पद:-
कहौ सतगुरु कहौ सतगुरु कहौ सतगुरु कि जै जै जै।
भगायो जिन भगायो जिन भगायो जिन सब भै भै भै।
खिला तन मन खिला तन मन खिला तन मन न मै मै मै।
कर्म दोनो कर्म दोनो कर्म दोनो भे छै छै छै।
ध्यान धुनि भा ध्यान धुनि भा ध्यान धुनि भा औ लै लै लै।५।
रूप सन्मुख रूप सन्मुख रूप सन्मुख में है है है।
मुक्ति भक्ती मुक्ति भक्ती मुक्ति भक्ती कि तै तै तै।
सुफ़ल नर तन सुफ़ल नर तन सुफ़ल नर तन न द्वै द्वै द्वै।८।