४२९ ॥ श्री अधार सिंह जी ॥
पद:-
भजु भरथ लखन शत्रुहन लाल। मिटि जांय सबै तन मन के जाल।२।
दें मुक्ति भक्ति अति हैं कृपाल। श्री सीय राम जिन पर दयाल।४।
भाजै लखि तिनको मृत्यु काल। बल प्रेम ज्ञान वैराग्य टाल।६।
बाटैं औ काटैं लिखा भाल। सुर मुनि जिनका यश बरणैं आल।८।
तिन सम कहिये को है बिशाल। नर नारि चहैं धन यश औ बाल।१०।
सुमिरैं सब को करि दें निहाल। कहते अधार करि लेव ख्याल।१२।