४३० ॥ श्री मंगल सिंह जी ॥ चौपाई:- मुद मंगल चाहै जो कोई। सुमिरे हरि सब करतल होई।१। मंगल कहैं सुनो नर दारा। सुमिरि नाम भव होवौ पारा।२।