४३१ ॥ श्री रंका जी ॥
चौपाई:-
रंका कहि हरि सुमिरन करिये। करि पुरुषार्थ उदर को भरिये।१।
अन्त समय हरि धाम सिधरिये। जन्म मरन में तब नहि परिये।२।
चौपाई:-
रंका कहि हरि सुमिरन करिये। करि पुरुषार्थ उदर को भरिये।१।
अन्त समय हरि धाम सिधरिये। जन्म मरन में तब नहि परिये।२।