४३७ ॥ श्री सतगुरु दास जी ॥
पद:-
अपने शिष्यन को सतगुरु तारैंगे।
शान्ति शील सन्तोष क्षिमा औ सरधा दया से निहारैंगे।
कर्म धर्म शुभ सत्य दीनता प्रेम के पथ पै डारैंगे।
सूरति शब्द क भेद बताय के नाम कि धुनि परचारैंगे।
राम सिया की झांकी वांकी सन्मुख शिष्य निहारैंगे।५।
ध्यान में नाना लीला निरखैं प्रेम मगन उर धारैंगे।
शून्य समाधि में पहुँचि जाँय जब सुधि बुधि सबै बिसारैंगे।
सुर मुनि बहुत आय सँग खेलैं कोमल बचन उचारैंगे।
मैं माया तीनो गुण असुरन ज्ञान कृपान से मारैंगे।
सतगुरु दीनदयाल कृपानिधि जियतै सब निखारैंगे।१०।
मुक्ति भक्ति जो सार वस्तु है देहैं सुधि न बिसारैंगे।
अधिकारी जे राम भजन के दै उपदेश सुधारैंगे।
ख्याल में नेकौं जे जन चूकैं कर गहि उन्हैं उबारैंगे।
हर दम ध्यान रहै दीनन पर या बिधि सबै सम्हारैंगे।
नाम रूप परकाश ध्यान लय साजि सिंगार सँवारैंगे।
सतगुरु दास कहैं श्री सतगुरु अन्त साकेत बिठारैंगे।१६।