४४२ ॥ श्री शिव दीन सिंह जी ॥
जारी........
तोरि जँजीरा राखि कबीरा हरि सब तीरा तुम्हीं तो हो।
बावन को रूपं नर हरि रूपं सूकर रूपं तुम्हीं तो हो।
लोमश दिगपाला दिशा औ काला हाँक हवाला तुम्हीं तो हो।
शशि भानु औ उड़गन सुर मुनि ऋषि जन मंदिर तीरथ तुम्हीं तो हो।५०।
द्वीप खंड औ भुवन लोक सब कारण कारज तुम्हीं तो हो।
मणि मुक्ता पारस वस्त्र औ भूषण अस्त्र बनैया तुम्हीं तो हो।
प्रकृती युग माया धूप औ छाया षट ऋतु आयू तुम्हीं तो हो।
सुर ग्राम औ ताला धुनि लय आला करत निहाला तुम्हीं तो हो।
सब राग औ साजा मधुर अवाजा सकल समाजा तुम्हीं तो हो।५५।
ग्रह रासि महूरत अद्भुत मूरति साँवलि सूरत तुम्हीं तो हो।
प्रारब्धि औ संचित क्रियामान औ दैहिक दैविक भौतिक तुम्हीं तो हो।
स्थूल औ सूक्षम कारन महाकारन चौदहो ब्रह्म प्रभु तुम्हीं तो हो।
सब भोग बिलासा भूँख औ प्यासा रस औ स्वादा तुम्हीं तो हो।
जल चर स्वामी थल चर स्वामी नभ चर स्वामी तुम्हीं तो हो।६०।
हानि लाभ औ शर्म शौक दुख नींद सोवैया तुम्हीं तो हो।
भय निर्भय अद्वैत द्वैत औ प्रेत पितर सब तुम्हीं तो हो।
गन्धर्व यक्ष किन्नर गण आठौं बीर भद्र प्रभु तुम्हीं तो हो।
बाबन बीर योगिनी चौसंठ क्षेत्र पाल प्रभु तुम्हीं तो हो।
काम क्रोध मद लोभ मोह मन बुद्धि चित्त प्रभु तुम्हीं तो हो।६५।
दम्भ कपट पाखण्ड मस्खरी अरुचि अपच प्रभु तुम्हीं तो हो।
परा बाणि पैशन्ती बाणी मध्यमा बाणि प्रभु तुम्हीं तो हो।
बैखरी बाणि औ ब्रह्म बाणि सबमें समान प्रभु तुम्हीं तो हो।
इड़ा नाड़ि पिंगला नाड़ि सुखमना नाड़ि प्रभु तुम्हीं तो हो।
चित्रणी नाड़ि बज्रणी नाड़ि औ ब्रह्म नाड़ि प्रभु तुम्हीं तो हो।७०।
षट चक्र सातहू कमल नागनी अनहद बाजा तुम्हीं तो हो।
खेचरी मुद्रा चाचरी मुद्रा भूचरी मुद्रा प्रभु तुम्हीं तो हो।
अगोचरी मुद्रा उनमुनी मुद्रा लय जड़ समाधि प्रभु तुम्हीं तो हो।
अष्टाङ्ग योग हठयोग और श्री राज योग प्रभु तुम्हीं तो हो।
आठौं परा चारिहू अजपा तीनो जप प्रभु तुम्हीं तो हो।७५।
ध्यान चारि विज्ञान चारि एकादश भक्ती तुम्हीं तो हो।
तेरहौ त्याग औ कर्म धर्म औ नेम टेम प्रभु तुम्हीं तो हो।
रहन गहन अवसहन ख्याल जो अंक भाल प्रभु तुम्हीं तो हो।
औषधी वैद्य रोगी औ रोग संयम निरोग प्रभु तुम्हीं तो हो।
बेद शास्त्र पोथी पुराण उपनिषद संहिता तुम्हीं तो हो।८०।
कंद मूल फल अन्न मिठाई अमी हलाहल तुम्हीं तो हो।
कवि कोविद और धूप आरती स्तुति प्रतिमा तुम्हीं तो हो।
श्रंगार छटा आशीरवाद परनाम श्राप प्रभु तुम्हीं तो हो।
कल्यान कुशल औ गुप्त प्रगट तुरिया महातुरिया तुम्हीं तो हो।
प्राण जीव आतम परमातम तन मन धन सब तुम्हीं तो हो।८५।
सर्व नाम औ सर्व रूप औ सर्व काम प्रभु तुम्हीं तो हो।
शिवदीन सिंह को दर्शन दै बैकुण्ठ भेजैया तुम्हीं तो हो।८७।