४४६ ॥ श्री इस्माइल जी ॥
पद:-
यक दफ़ा मोहन दरश देकर किया मुझको कटा।
छिप के बैठे हो कहाँ दिखलाइये वह फिर छटा।
प्राण बिन देखे निकल जावैंगे तन मन अट पटा।
क्या करोगे आयकर जब तन चलैगा मरघटा।
सब से बिलग सुर मुनि कहैं और सब में फिर कहते सटा।५।
इच्छा करो पूरी मेरी लागै न अन्त में घट घटा।
रूप सन्मुख आप अपना दीजिये मेरे डटा।
इस तन में जितने चोर हैं सब करते निश दिन खट्ट पटा।
करके कृपा मुझ दीन पर अब दीजिये इनको हटा।
आप ही के हुक्म से सब को रहे यह खट खटां।१०।
जग में बिमुख जे आपसे उनसे अधम औ को लटा।
कहता है इस्माइल किया सुमिरन सोई हरि पुर अटा।१२।