४४७ ॥ श्री सफी बक्स जी ॥
पद:-
घनश्याम मन मोहन मुझे दर्शन दिखाता क्यों नहीं।
दर का भिखारी हूँ बना प्यारे दयाता क्यों नहीं।
अनुपम छटा दिखलाय कै तन मन लोभाता क्यों नहीं।
तिरछा चरन धरि सामने मुरली सुनाता क्यों नहीं।
नैनों की सैन चलाय कै फिरि मुस्किराता क्यों नहीं।५।
नूपुर बजा छमा छम झुक झूमि आता क्यों नही।
प्रेम तन मन से मेरा उर में लगाता क्यों नहीं।
कहता सफ़ी निज धाम को मुझ को पठाता क्यों नहीं।८।