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४६० ॥ श्री चोंगा दास जी ॥


पद:-

जवानी में दिवाना बनि करत क्यों पाप मन माना।

चारि दिन की है ज़िन्दगानी अन्त में नर्क हो जाना।

समय जब होगा चलने का ले आवैं दूति परवाना।

देखतै होश उड़ि जैहैं भूलि सब जाय बतलाना।

मारि तन से अलग करिके चलैं लै करते कढ़िलाना।५।

हाय रे हाय चिल्लावो सुनै नहि नेक बैकाना।

करैं दरबार में हाजिर जहाँ इन्साफ़ है ठाना।

लेय लेखा बतावो क्या नाम धुनि सार नहि जाना।

कुटम्मस होय फिर वँह पर जाँय लै नर्क में साना।

पिटाई हर समय होती मिलै मल मूत्र का खाना।१०।

कहा मानो करो सतगुरु मिलै धुनि नूर लै ध्याना।

लखौ सिय राम को हर दम सुनो हर दम मधुर ताना।

चक्र षट शोधि जावैंगे कमल सातौं हो उलटाना।

जगै नागिन मिटै आलस देव मुनि तीर्थ दरशाना।

जियति लो मुक्ति औ भक्ती ये पद मानो है निर्वाना।

दास चोंगा कहै भाई लौटि जग फेरि नहि आना।१६।