४५९ ॥ श्री पोंगा दास जी ॥
पद:-
भुलायो हरि सुमिरन कौनी करतूति।
भोजन बसन गपाष्टक कहि सुनि पर दारन संग सूति।
जब यम दूत आय गहि बाँधै दस्त होय दें मूति।
कढ़िलावत यम पुर लै चलिहैं शिर पर मारत जूति
लेखा काह बताओगे तुम पहिले चुके हैं कूति।५।
देंय छोड़ाय नर्क रौरव में तन मन जावै भूति।
स्वाँसन घूँटी जाय वहाँ पर ऊपर ते रहे घूति।
रसना झूँठे बचन कहन हित पालै है जिमि तूति।
सतगुरु करि सुमिरन बिधि जानो काहे रहे हो सूति।
लय धुनि ध्यान और परकाशा पाय के हो मजबूति।१०।
राम सिया को निरखौ हर दम जिनकी सकल बिभूति।
पोंगा दास कहैं साकेत में चलि बैठो बनि मूर्ति।१२।