४६६ ॥ श्री जालिपा जी ॥
दोहा:-
हरि सुमिरन में एक रस पग जावै जो कोय।
सो भव बन्धन ते छुटै ररंकार धुनि होय।१।
ध्यान प्रकाश समाधि औ हर दम दर्शन होय।
कहैं जालिपा सुनो सुत, आवागमन न होय।२।
दोहा:-
हरि सुमिरन में एक रस पग जावै जो कोय।
सो भव बन्धन ते छुटै ररंकार धुनि होय।१।
ध्यान प्रकाश समाधि औ हर दम दर्शन होय।
कहैं जालिपा सुनो सुत, आवागमन न होय।२।