४८१ ॥ श्री फय्याज़ जी ॥
पद:-
धुनि नाम कि प्यारी खुलि जावै जो सब की मानो ज़र ज़र ज़र।
फय्याज़ कहैं तब फुरसत हो कबहूँ नहि प्यारे मर मर मर।
यह सीख तरीका मुरशिद से झूठै क्यों बकता फर फर फर।
इकरार किया जो गर्भ में तू उस को अब चेत के कर कर कर।
दोज़ख में जाय बिना सुमिरन नहि पल भर कल तँह पर पर पर।५।
यह बात तेरे है मतलब की तू जानि के भव निधि तर तर तर।
यम दूत लेन जब आवैंगे लखि रोवो आँसू भर भर भर।
फिरि परै पिटाई तन उपर तब गोज़ निकलिहै टर टर टर।८।