४८० ॥ श्री बादल जी ॥
पद:-
हरि नाम क सुमिरन कर कर कर।
दुख आनि पड़ै मति टर टर टर।
मुरशिद करि भव निधि तर तर तर।
जब शब्द पै सूरति धर धर धर।
तब ध्यान समाधि में पर पर पर।५।
लखु रूप नूर मन भर भर भर।
तब निर्भय किस से डर डर डर।
बादल कह चल निज घर घर घर।८।