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४८९ ॥ श्री महमूद खाँ जी ॥


पद:-

ध्यान धुनि नूर लय रोशन मिला जिसको तरा जग से।१।

जाप अजपा इसे कहते बिना रसना र रा ढँग से।२।

पाँच औ तीनि मन माया पचीसौं को जरा सँग से।३।

कहैं महमूद मुरशिद बिन फिरैं चकरात जग ठँग से।४।