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४८८ ॥ श्री इमदाद खाँ जी ॥


पद:-

मिलै सांचा जिसे मुरशिद भजन का मार्ग बतलावै।

छटा घनश्याम राधे की सदा सन्मुख में छबि छावै।

धुनी जारी रहै हर दम ध्यान परकाश लय पावै

देव मुनि संग में खेलैं वरन ने में जो नहि आवै।

बजै अनहद सुघर बाजा ताल स्वर राग दरशावै।५।

शान्ति तलवार में भाई दीनता मूठि लगवावै।

सत्य के म्यान में राखै फौज़ असुरन कि भगि जावै।

ढाल विश्वास में जोती लगै सन्तोष जय पावै।

जियत में तै किया जिसने अन्त हरि पुर को सो धावै।

नहीं तो आने जाने का कठिन चक्कर न सुख पावै।१०।

नाम औ रूप की सत्ता अमित हर शै में लहरावै।

कहै इम्दाद जो जानै सो हरि संग रूप बनि जावै।१२।