४९१ ॥ श्री दाता शाह जी ॥
पद:-
तिल तिल का होत हिसाब रोज़ सच झूठ छिपैगा यार नहीं।
हरि नाम जानि लो सतगुरु करि तब तुम पर कोई वार नहीं।
नाहीं तो यारों हो मुशिकल बे दर्द करैं यम प्यार नहीं।
दिन चारि क है यह ठाठ सुनो यहँ पर तुमरा घर वार नहीं।
धुनि ध्यान समाधि व नूर बिना हो कोई भव से पार नहीं।५।
है एक औ सब में परिपूरन परत्यक्ष छिपा सरकार नहीं।
तन मन से हिम्मत जे हारैं ते पावैंगे सरदार नहीं।
कहता है दाताशाह बृथा तन जो सन्मुख दिलदार नहीं।८।