४९२ ॥ श्री नूरे शाह जी ॥
पद:-
मोह का जब हटै परदा, छुटै शीशे क तब गरदा।१।
मान अपमान जिन मरदा, वही भव जाल नहिं सरदा।२।
शुक्र हरि का जे नहिं करँदा कहैं नूरे ते नहि तरँदा।३।
बशर का तन पैहैं वरदा खाय कसि पेट को भरदा।४।
पद:-
मोह का जब हटै परदा, छुटै शीशे क तब गरदा।१।
मान अपमान जिन मरदा, वही भव जाल नहिं सरदा।२।
शुक्र हरि का जे नहिं करँदा कहैं नूरे ते नहि तरँदा।३।
बशर का तन पैहैं वरदा खाय कसि पेट को भरदा।४।