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५ ॥ श्री पण्डित राम सुरति जी ॥


पद:-

नेम टेम से आरती हरि की करौ तन मन लगा।

दीनता औ प्रेम आवै द्वैत को दीजै भगा।

सतगुरु से जानो भेद जब तब होय हरि तेरा सगा।

सुर मुनि करैं बातैं विहँसि बस जाय मिटि भव का दगा।

ध्यान धुनि लै नूर हो तब नागिनी देवै जगा।५।

सामने हर दम लखै सूरति शबद पथ जो पगा।

सुमिरन बिना जम दूत नर्क में देंयगे उलटा टंगा।

कहैं राम सूरति दुक्ख भोगौ मूत्र मल से तन रंगा।८।