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६ ॥ श्री भानु मती जी ॥


पद:-

सबला को कहैं अबला बिरथा जिन से बिरलै कोइ सूर बचैं।

करि धारन गर्भ सहैं दुख को पैदा करि सेय सयान रचैं।

पति की सेवकाई करैं हित से तन छूटै तो संग सती ह्वै पचैं।

तन मन धन धर्म को लेव यहाँ हँसि बोलि औ गाय रिझाय नचैं।

जम लोक में फेरि मिलैं तुमको संग लोह के लाले खम्भ तचैं।५।

या से अबला कोई न कहै यह बैन मेरे उर नाहिं जचैं।

तन मानुष का अनमोल मिला हरि नाम में जे जन जाय मचैं।

कह भानु मती जियतै सुख हो मिटि जाय जौन विधि भाल खचैं।८।


दोहा:-

सतगुरु से उपदेश लै, तन मन प्रेम लगाय।

शब्द पै सूरति को धरै, नाम कि धुनि खुलि जाय।१।

बाजा अमित प्रकार के, बजै सुनै सुख होय।

ध्यान प्रकाश समाधि हो, द्वैत जाय सब खोय।२।

राम सिया की छटा छवि, हर दम परै दिखाय।

सुर मुनि आवैं मिलन को, हित करि लें उर लाय।३।

तन छूटै साकेत चलि, बैठ जाव मुख मौन।

भानु मती कह फेरि जग, होय न कबहूँ गौन।४।