२२ ॥ श्री छेदा सिंह जी ॥
पद:-
चुर मुरु चुर मुरु पगन पनहियां बोलैं चारिउ भैयन की जू।
कामदार अनमोल है पनही चम चम चम चम कैयन की जू।
राम भरथ औ लखन शत्रुहन संग बहु सखा खेलैयन की जू।
छोटे छोटे बाण छोटे छोटे तरकस छोटी छोटी धनुहियन की जू।
कदली खम्भ गड़ाय निशाना मारत बेधि जवैयन की जू।५।
कूदत हंसत दौरि तहं जावत निज निज बाण बुझयन की जू।
माथे मुकुट श्रवण दोउ कुंडल कठुला गले स्वहैयन की जू।
पगन पौटिया कटि कर धनियां झींगुलि तन फहरैयन की जू।
नैनन काजर भाल में अनखा नाशा मणि लटकैयन की जू।
दरशन हित नित सुर मुनि आवत तन मन प्रेम पगैयन की जू।१०।
सतगुरु करि सुमिरन विधि जानै नित देखै छवि छैयन की जू।
छेदासिंह कहै को वरनै शारद शेष थकैयन की जू।१२।