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२३ ॥ श्री जमूरे शाह जी ॥


पद:-

कथा औ कीर्तन पूजन पाठ करि सार क्या जाना।

हुआ मन है नहीं काबू करे जो उसके मन माना।

सजा इसकी मिलै यारों अन्त जब नर्क हो जाना।

भजन में इस कि नहिं गिनती जब तलक मन न ठहराना।

जगत में मान होने हित ठान झूठा ये क्यों ठाना।५।

बिना महरम न हो हासिल मान लो सत्य कुछ ज्ञाना।

चलो जड़ से नाम को लै मिलै धुनि नूर लै ध्याना।

सामने राधिका मोहन लखौ हर वक्त मुसक्याना।

देव मुनि आय के बैठें सुनावै क्या मधुर गाना।

बजै अनहद सुघर घट में बतावो क्या अजब ताना।१०।

पाठ पूजन कीर्तन औ कथा का शब्द है बाना।

कहने सुनने औ करने का सामने तत्व लखि पाना।

मुनासिब बात कहने पर बुरा कोई न मन लाना।

तुम्हारे पार होने हित पड़ा हमको यह बतलाना।

मान लो गर सखुन मेरा तो हो जग फिर नहीं आना।

जमूरे कह मौन बैठो न कुछ पीना न कुछ खाना।१६।