२९ ॥ श्री रण धीर सिंह जी ॥
पद:-
कुँवर चारिउ सरजू करैं असनान।
भरथ लखन शत्रुहन मलैं तनु ठाढ़े राम सुजान।
श्याम पीत झांकी सुर मुनि लखि नभ में जै जै ठान।
सरजू जी पैकरमा करि फिरि सन्मुख करतीं गान।
अवध पुरी आरती उतारैं तन मन प्रेम समान।५।
शेष प्रगट ह्वै चरनोदक लै नाचत पौन समान।
सतगुरु करौ लखौ यह लीला क्या करि सकौ बखान।
कहैं रणधीर सिंह बिन सुमिरे खुलै न आँखी कान।८।