३० ॥ श्री हर दत्त जी ॥
पद:-
मन अब सुनो ब्रह्म की बानी।
ध्यान प्रकाश समाधी होवै सुधि बुधि जहां भुलानी।
यह बानी सुर मुनि सब जानै जो सब माहिं समानी।
या ही ने सब जग उपजायो या बिन हो हैरानी।
या खुलि जाय अखण्डित होवै सन्मुख प्रभु महरानी।५।
कहैं हर दत्त मिलै सतगुरु जब तब जानै कोई प्रानी।
जियतै मुक्ति भक्ति को पावै हम यह सांच बखानी।
सूरति शब्द के संग लगै जब बन जाव पूरे ज्ञानी।८।