३१ ॥ श्री महेश सिंह जी ॥
पद:-
सखिन के नैनन ते आँसुन कि धार बहै जानि परै कूप और वापी
भरि जाँयगे।१।
जल परिपूरन ह्वै बाहर चलैगो जब सारे ताल सरिता और
नाले उमड़ायंगे।२।
फेरि नीर वेग से चलैगो सब सिन्धु भरैं लौटि सब जक्त वारि
भौंर गुमरांयगे।३।
कहत महेश सिंह सखी कहैं ऊधो सुनो हम और तुम सब
कृष्ण में समायेंगे।४।